27 अग॰ 2009

जिले के तीन शिक्षकों को राष्ट्रपति पुरुस्कार: लोगों की छाती खुशी से चौड़ी हो जायेगी

पांच सितम्बर शिक्षक दिवस को जब दिल्ली में देश की प्रथम नागरिक के हाथों से गुरुतर दायित्व समाज के लिए आदर्श शिक्षक सम्मानित होंगे उस समय जिले के लोगों की छाती खुशी से चौड़ी हो जायेगी। अपने यहां के एक नहीं तीन शिक्षक इस सम्मान के हकदार बनेंगे। जिनका संदेशा शिक्षकों के लिए ही नहीं पूरे समाज के लिए नैतिक दायित्वों मानवीय मूल्यों के प्रति कुछ करने का जज्बा पैदा करेगा।

सम्मान के इतिहास में यह पहला मौका है जब जिले के तीन शिक्षकों को एक साथ महामहिम के सम्मानित होने का मौका मिल रहा है। बेसिक शिक्षा विभाग में भी इस बात को लेकर खुशी की लहर है कि सम्मानित होने वाले सभी शिक्षक परिषदीय स्कूलों के हैं। जिले में अब तक डेढ़ दर्जन शिक्षक राष्ट्रपति राज्यपाल से सम्मान हासिल कर चुके हैं। इसी श्रंखला में शैक्षिक सत्र 2009 में पूर्व माध्यमिक विद्यालय रावतपुर के प्रधानाचार्य रज्जन प्रसाद अवस्थी, जूनियर हाईस्कूल लौगांव के प्रधानाचार्य विजय सिंह प्राथमिक विद्यालय हरियापुर के लाखन सिंह का नाम भी जुड़ गया।




पर्यावरण साक्षरता मिशन को बनाया लक्ष्य

तेलियानी ब्लाक के पूर्व माध्यमिक विद्यालय रावतपुर के सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक रज्जन प्रसाद अवस्थी जिस विद्यालय ब्लाक में रहे पौधरोपण कराकर पर्यावरण के प्रति सजगता साक्षरता मिशन में निरक्षरों को अक्षर ज्ञान कराकर अशिक्षा जैसी कुरीति को मिटाने में आगे रहे।

वर्ष 2009 के राष्ट्रपति पुरस्कार की चयन सूची में शामिल श्री अवस्थी का मानना है कि परिवेश भले ही बदला हो, लेकिन शिक्षक के दायित्व और शिक्षा के पहलुओं में कोई अन्तर नहीं है। आज भी शिक्षक के अन्दर वही गुरुतर भाव और शिष्य को ऊंचाइयों में पहुंचते देखकर खुशी का भाव आता है। इस सवाल पर कि अब तक की नौकरी में आपने कौन सा ऐसा काम किया जिसमें स्वयं पर गर्व महसूस कर रहे हों पर उन्होंने कहा कि पौधरोपण साक्षरता मिशन के कार्य में जो उन्हें सफलता मिली

वह उनकी खास उपलब्धि है। सम्मान के साथ दो वर्ष सेवाओं का भी अवसर बढ़कर मिल रहा है इसमें कुछ खास करने का इरादा जाहिर करते हुए श्री अवस्थी ने कहा कि वह चाहते हैं कि अभिभावकों की हर सप्ताह गोष्ठी करके उनसे सुझाव मांगे। बच्चों का स्कूलों में ठहराव और कमजोर बच्चों को उपचारात्मक शिक्षा से बराबरी पर लाया जाये। उन्होंने कहा कि बीएसए उनका स्टाफ बधाई का पात्र है जिसने मूल्यांकन कर उनके नाम को सम्मान के लिए आगे बढ़ाया।




शिक्षा के साथ समाज से जुड़कर किया काम

पूर्व माध्यमिक विद्यालय लौगांव के प्रधानाध्यापक विजय सिंह कक्षाओं में बच्चों का ठहराव योगासन के माध्यम से बच्चों में शैक्षिक सहगामी क्रियाकलापों के प्रति सदैव जागरुक रहे और अब वह आगे दो वर्ष की सेवाओं में कुछ कर दिखाने का जज्बा संजोये हुए हैं।

बीआरसी असोथर का भी कार्यभार देख रहे श्री सिंह ने राष्ट्रपति से सम्मानित होने की चयन सूची में नाम आने पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि पूरी नौकरी में उनका उद्देश्य बच्चों का हित सर्वोपरि रहा। उन्होंने कहा कि वह बतौर बीआरसी जब विद्यालयों में भ्रमण में जाते हैं तो हर स्कूल में बच्चों को योगासन सिखाने के साथ कक्षायें लेकर शैक्षिक गुणवत्ता के प्रति भी शिक्षकों को प्रेरित करते हैं। लौगांव जूनियर विद्यालय में नब्बे फीसदी बच्चों की उपस्थिति रहती है। सामाजिक सेवाओं के प्रति भी वह बराबर जागरुक हैं। कहते हैं कि यह उनके लिए खास उपलब्धियों में रहता है जब वह

किसी विकलांग असहाय की मदद कर देते हैं। श्री सिंह कहते हैं कि दो वर्ष की सेवा का कार्यकाल बढ़ने के साथ ही वह यह चाहते हैं कि परिषदीय स्कूलों की शिक्षा के स्तर को इतना ऊंचा कर दें कि प्रवेश के लिए लोगों को सिफारिश करनी पड़े। आज के परिवेश पर उनका कहना है कि शिक्षक को अपने नैतिक दायित्वों को समझना चाहिए। समाज का दर्पण जिसे कहा गया है वही रास्ता भूल जायेंगे तो दूसरों को क्या कह सकते हैं।



गरीब बच्चों की मदद मेधावियों का करते सम्मान

बहुआ ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय हरियापुर के प्रधानाध्यापक लाखन सिंह सम्मान से तो गदगद हैं, लेकिन यह क्षोभ भी है कि सरकार जितना पैसा उतना दे रही है उतना वह नहीं कर पा रहे हैं।

वर्ष 1993 की खेलकूद प्रतियोगिता में प्राथमिक विद्यालय किछौछा टीम की हार ने उन्हें कुछ कर दिखाने का जज्बा दिया। यह उपलब्धि भुला नहीं पा रहे कि हारने के बाद उन्होंने खो-खो में बच्चों को इतना पारंगत किया कि वर्ष 1995 में जिला नहीं प्रदेश में जीत कर गोल्ड मेडल हासिल किया। उन्होंने कहा कि इसी क्षण से उनके अंदर यह भावना जागृत हो गयी कि प्रयास करने पर कुछ भी कर दिखाया जा सकता है। गरीब बच्चों को अपने वेतन से ड्रेस देना मेधावी बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए पुरस्कार देना उनका एक लक्ष्य बन गया है। कहते हैं कि विद्यालय का शैक्षिक माहौल वह इस तरह बनाना चाहते हैं कि उनके अपने बच्चे भी वहीं पढ़ें और शिक्षक होने के नाते बस यही भाव रहता है कि हर बच्चा अपना है और बच्चे का हित ही सर्वोपरि है। प्राथमिक विद्यालय हरियापुर में पचासी फीसदी से अधिक बच्चे उपस्थित रहते हैं। प्रार्थना के समय ही सभी बच्चे जाते हैं और आसपास कोई नर्सरी मांटेसरी विद्यालय नहीं चल रहा है। हरियापुर के ही नहीं तीन-चार गांवों के बच्चे यहां अच्छी शिक्षा के लिए प्रवेश लेते हैं। श्री सिंह का कहना है कि सम्मान से तो वह खुश हैं, लेकिन यह चाहते हैं कि अपने दायित्वों पर और खरा उतरें।


(साभार - दैनिक जागरण)

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