5 फ़र॰ 2009

कोचिंग नहीं पढ़ेंगे तो पिछड़ जायेंगे?

 

सरस्वती के मंदिर कहे जाने वाले विद्यालयों के बारे में पहले यह कहा जाता था कि यहां की दीवारें पढ़ाती हैं अब तो प्रवेश कराने के बाद छात्र ही नहीं अभिभावक यह सलाह देने लगते हैं कि स्कूल में क्या रखा है कोचिंग करके परीक्षा की तैयारी करो। जब छात्रों के साथ अभिभावकों की यह मानसिकता हो जायेगी तो जाहिर है कि कोचिंग ही स्कूल बन जायेंगे।


ऐसे में जब बोर्ड परीक्षा नजदीक है हर छात्र कोचिंग की ओर रुझान किये है तो गली-मोहल्लों में कोचिंग खुल गयी हैं। कोचिंग अधिनियम में पंजीयन मौसम की बहार में कोई मायने नहीं रखता। शिक्षा विभाग भी अनदेखी किये हुए है तभी तो कुछ ऐसे कोचिंग संस्थान हैं जहां न तो योग्य शिक्षक हैं और न ही शैक्षणिक गुणवत्ता का कोई माहौल।

हाईस्कूल, इण्टर की बोर्ड परीक्षा अगले माह से शुरू हो रही है। यूं तो शुरू से ही कोचिंग की ओर छात्र-छात्राओं का रुझान इतनी तेजी से बढ़ रहा था कि स्कूल की कक्षायें गौड़ हो गयी हैं। समूचे जनपद में तकरीबन दो सौ कोचिंग संस्थान कोचिंग अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत हैं। बताते हैं कि इस समय कोचिंग संस्थानों की संख्या पंजीयन संख्या से लगभग ड्योढ़ी हो गयी है। राजकीय व सहायता प्राप्त स्कूलों के विषयाध्यापक भी गुपचुप ढंग से आठ से दस छात्रों का बैच लगा रहे हैं।

शहर के राजकीय, सहायता प्राप्त इण्टर कालेजों का माहौल यह बता रहा है कि छात्र-छात्रायें कोचिंग को ही परीक्षा तैयारी का माध्यम बनाये हुए हैं। इण्टरवल के बाद तो स्थिति यह होती है कि दस व बारह की कक्षाओं में छात्र ही ढूंढे नहीं मिलते। अस्सी से सौ छात्रों की कक्षाओं में बमुश्किल तीस से चालीस छात्र ही उपस्थित होते हैं और वह भी इन्टरवल तक। इसके बाद तो कोई रुकता ही नहीं। भले ही अधिनियम लागू कर कोचिंग की गुणवत्ता पर शासन ने एक मापदण्ड तय कर दिया हो, लेकिन सच्चाई यह है कि शिक्षा विभाग की अनदेखी के चलते मनमानी चल रही है। इतना ही नहीं हाईस्कूल में विज्ञान, गणित को पढ़ाने वाले कई कोचिंग संस्थानों में इण्टर उत्तीर्ण ही लगे हुए हैं। योग्यता का मापदण्ड न होने से कोचिंग संस्थानों से मिलने वाली शिक्षा पर सवालिया निशान लग रहे हैं।


राजकीय बालिका इण्टर कालेज में पढने वाली छात्राओं की अलग ही समस्या है कि वहां पर विज्ञान, गणित और अंग्रेजी की शिक्षिकायें ही नहीं हैं। कोचिंग न पढ़ें तो कोर्स ही नहीं पूरा होगा। जबकि कोचिंग क्या स्कूल की तरह वहां भी पढ़ना पड़ता है। दस-बीस नहीं चालीस से पचास छात्राओं का एक बैच रहता है। यदि कोई सवाल समझ में नहीं आता तो उसे पूछने का भी मौका नहीं दिया जाता। बच्चों की मजबूरी है कि जब स्कूल में पढ़ाई नहीं होगी तो कोचिंग में प्रवेश लेना ही पड़ेगा ।

छात्र-छात्राओं का स्कूलों से उठते भरोसे पर प्रधानाचार्यो का कहना है कि ऐसा नहीं है कि स्कूल में कक्षायें न संचालित होती हों। कुछ ऐसा माहौल ही बन गया है कि छात्र यह समझते हैं कि कोचिंग नहीं पढ़ेंगे तो पिछड़ जायेंगे।

राजकीय इण्टर कालेज के प्रधानाचार्य शिवाकांत तिवारी के अनुसार पाठ्यक्रम परीक्षा के पहले पूरा कराया जाता है। जो बच्चे क्लास में आयेंगे ही नहीं उनके लिये क्या किया जा सकता है। एएस इण्टर कालेज के प्रधानाचार्य अकबाल सिंह का मानना है कि कोचिंग के बजाय छात्र यदि कक्षा में पढ़ाये गये पाठ्यक्रम को दोहराये तो वह बेहतर तैयारी कर सकता है।

3 टिप्‍पणियां:
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  1. मास्साब बहुत सही कहा आपने।दरअसल समय बदल रहा है।हम लोग जब स्कूल मे थे तो कम्ज़ोर लड़के छुप कर ट्यूशन पढने जाते थे,ताकि किसी को पता ना लगे और अब तो ये हालत है जो कोचिंग नही जाते उसकी आर्थिक स्थिती की समीक्षा हो जाती है।कह दिया जाता है कि बेचारा एफ़ोर्ड नही कर सकता। आपने बहुत सही कहा मास्साब,आपको प्रणाम करता हूं।

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  2. कोचिंग का रोग अब कैंसर बन गया है. बच्चों का बचपन छीना जा रहा है. इसके बिना तो किसी प्रतियोगी परीक्षा की कल्पना ही नहीं की जा सकती. इन सब का प्रमुख कारण तो निश्चित ही विद्यालयों में शिक्षा के निम्न स्टार का है. कैसे सुधारें.

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  3. क्या उलटा जमाना आ गया है, जब हम पढते थे तो टुशन पढना मना थी, अगर कोई बच्चा या कोई कलास थोडी कमजोर होती थी तो अलग से कलास लगा कर कमी पुरी की जाती थी, ओर स्कूल का नाम चमकाने के लिये बहुत सख्ती होती थी, आज कल सब उलटा. राम राम

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