16 अक्तू॰ 2008

खजुहा की रामलीला

 


फतेहपुर जिले के खजुहा कस्बे में रामनगर शैली में रामलीला तो होती ही है साथ ही रावण को उतना ही सम्मान दिया जाता है जितना कि दक्षिण भारत में। यहाँ पुतले को जलाने के स्थान पर उसकी आरती वंदना की जाती है। इस रामलीला की शुरुआत लगभग ४०० वर्ष पूर्व हुई थी जिसका उल्लेख "वंशावली" पुस्तक में मिलता है। लीला का प्रारंभ विजयादशमी से होता है। रावण के लगभग ५०-६० फ़िट लम्बे व २०-२५ फ़िट चौड़े आकृति की आरती हजार बत्तियों से की जाती है। प्रसाद एवं भोग सात्त्विक होता है। दिन में रावण-मन्दोदरी, मेघनाद, कुम्भकर्ण एवं विभीषण आदि ७ राक्षसों और बानरों तथा हाथी घोड़े आदि के विशालकाय पुतलों को नगर में घुमाया जाता है। रात्रि में खुले आसमान के नीचे रामलीला को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। दर्शनार्थियों की संख्या लाखों में होती है। इस प्रकार उत्तर भारत में रावण को सम्मान प्रदान करने वाली एक मात्र खजुहा की रामलीला ही है।

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