1 अक्तू॰ 2008

आइये इस नवरात्र में हम भी यह संकल्प लें!

 

पतित पावनी तो पूज्य हैं साथ ही जिन्हें हम पूजते हैं, श्रद्धा के फूल चढ़ाते हैं उन्हीं मूर्तियों, पूज्य देव स्वरूपों को गंगा को और मैली करने के लिये उनकी गोदी में सौंप देते हैं। क्या यही हमारी भावना और भक्ति है कि पहले से ही बहायी जाने वाली लाशों गन्दे नालों के पानी से कराह रही भागीरथी को और भी कष्ट और प्रदूषण में डालें। गंगा मैली और प्रदूषित तो पहले से ही हैं। गंगा बचाओ अभियान में आदि शक्ति मां जगदंबा की जनपद में स्थापित की जाने वाली हजारों मूर्तियों का गंगा में विसर्जन यदि रोक दिया जाये तो लाखों टन गंदगी से मां सुरसरि को बचाया जा सकता है।जरा गौर करें मूर्तियों प्रतिमायें मिट्टी, चूना, लकड़ी, बांस, पुआल, रासायनिक पेंट, प्लास्टर आफ पेरिस आदि सामग्री से तैयार की जाती हैं इसके साथ ही मूर्तियों की साज-सज्जा में कपड़े, प्लास्टिक रेडीमेड गहनें, फूल-माला, हवन सामग्री सहित पूजन की कुंतलों निष्प्रयोज्य सामग्री मूर्तियों के साथ ही गंगा को सौंप दी जाती हैं। आस्था और भक्ति के साथ हम देवी प्रतिमाओं का विसर्जन पवित्र गंगा में करते हैं उस समय यह नहीं सोचते कि जीवनदायिनी के जीवन को ही हम संकट में डाल रहे हैं। जनपद में तकरीबन एक हजार दुर्गा पंडाल सजाये जाते हैं जिनमें अन्य देवी देवताओं की सब मूर्तियों को यदि जोड़ लिया जाये तो संख्या पांच हजार से अधिक पहुंच जाती है। एक मूर्ति का वजन लगभग पचास किलो होता है इस तरह से आठ सौ टन मूर्तियां और उसके साथ लगभग इतनी ही निष्प्रयोज्य पूजन सामग्री यानि सोलह सौ टन प्रदूषण गंगा में विसर्जित करना कहां की आस्था मानी जायेगी।निर्मल धवल गंगा हमारे जीवन खुशहाली का प्रतीक है। इसे यदि हम नहीं बचा पाये तो जीवन का अस्तित्व ही संकट में हो जायेगा। संत समाज में मां गंगा को निर्मल अविरल करने का जो बीड़ा उठाया है उसमें जन-जन का सहयोग जरूरी है। डुबकी लगाकर मोक्ष और भक्ति की कामना करने के साथ ही हम गंगा को मां के रूप में पूजते हैं। यह देखना है कि कहीं हमारी आस्था से ही लिपट कर प्रदूषण तो मां के आंचल में तो नहीं पहुंच रहा। जिस तरह से अपने अस्तित्व के लिये भागीरथी को आज जूझना पड़ रहा है उसमें टेनरियों का गंदा पानी तो मुख्य कारक है ही शवों के प्रवाह के साथ मूर्तियों का विसर्जन भी एक बहुत बड़ा कारण माना जा रहा है। संतों का कहना है कि मूर्तियों का विसर्जन यदि रोक दिया जाये तो मां गंगा के प्रदूषण को ज्यादा नहीं तो पचीस फीसदी कम ही किया जा सकता है। यह कार्य आस्थावान लोगों को ही सोचना होगा। बताते हैं कि मूर्तियों का केमिकल जब पानी में घुलता है तो वह जलजीवों के लिये भी संकट बन जाता है। छोटी मछलियां अन्य जीव बड़ी संख्या में मर जाते हैं। संतों का यह भी कहना है कि आस्था के लिहाज से मूर्तियों का विसर्जन इसलिए भी उचित नहीं है कि गंगा का पानी जब कम हो जाता है तो तमाम मूर्तियां पानी में घुल नहीं पातीं और फिर लोगों के पैरों तले कुचलती हैं। मूर्तियों के विसर्जन से जलजीवों के संकट के साथ गंगा का पानी सड़ांध से महकने लगता है। प्लास्टर आफ पेरिस इतना नुकसान देय होता है कि पानी में घुलने के साथ ही यह विषाक्त हो जाता है। गंगा जल पीने से स्वास्थ्य के लिये भी नुकसानदेय हो सकता है। तीस सितंबर से दुर्गा पूजा महोत्सव शुरू हो रहा है। दशहरा के एक दिन पहले से मूर्तियों का विसर्जन शुरू हो जाता है जो लगातार तीन दिनों तक चलता है। इसके पूर्व गणेश पूजा महोत्सव में एक दर्जन से अधिक मूर्तियों का विसर्जन गंगा जी में किया गया। घर-घर पूजे जाने वाले लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां, देवी-देवताओं के चित्र घरों में अन्य देवताओं की चीनी मिट्टी, प्लास्टर आफ पेरिस मिट्टी की बनी मूर्तियों को भी सभी लोग गंगा जी में प्रवाह करते हैं। सच्चे मन से यदि गंगा को पवित्र करने का संकल्प है तो इस वर्ष मूर्तियों के गंगा जी में विसर्जन को रोककर हम सभी पवित्र गंगा को निर्मल अविरल करने में सहायक हो सकते हैं।
भस्म डालें खेत में, गंगा तट पर जमीन के अंदर करें मूर्तियों का विसर्जन
देवी-देवताओं की पूज्य स्वरूपा मूर्तियों के विसर्जन में शास्त्रों के मत को यदि लें तो जमीन के अंदर विसर्जित करना सबसे उत्तम है। संत कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ की बारह वर्ष बाद निकलने वाली शोभायात्रा में भी मूर्ति को समुद्र किनारे जमीन के अंदर ही विसर्जित किया जाता है। मूर्ति को समुद्र नदी में नहीं विसर्जित किया जाता। हवन की भस्म पूजन सामग्री को खेतों में यदि डाल देंगे तो वह सबसे उत्तम है। भस्म खेत में पड़ जाने से अच्छी पैदावार के साथ अन्न खाने से मन शुद्ध हो जाता है।

मां गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के अभियान में लगे स्वामी विज्ञानानन्द जी कहना है कि मूर्तियों का विसर्जन यदि गंगा जी से रोक दिया जाये तो एक चौथाई प्रदूषण कम हो जायेगा। उन्होंने कहा कि मूर्तियों को वैदिक मंत्रों के साथ जमीन के अंदर गड्ढा खोदकर विसर्जित करना सबसे उत्तम है। यदि गंगा की पवित्र माटी में ही लाने की इच्छा भक्तों में बलवती हो तो वह गंगा तट पर बालू के नीचे भी मूर्तियों को विसर्जित कर सकते हैं। चार से पांच फिट गहरायी पर मूर्तियों का विसर्जन मंत्रों के साथ करें। मूर्तियों के विसर्जन से यदि मां भागीरथी का आंचल गंदा होगा तो मां जगदम्बा की भक्ति नहीं मिल सकती है।

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